रायपुर संभाग में धान खेत के खरपतवारों का भौगोलिक विष्लेषण
डाॅ. राजेष्वर कुमार वर्मा1, सुश्री अंजनी पटेल2
1विभागाध्यक्ष, स्नातकोत्तर भूगोल विभाग, सेठ फूलचंद अग्रवाल महाविद्यालय, नवापारा,
जिला - रायपुर (छग
2तकनीषियन, स्नातकोत्तर भूगोल विभाग, सेठ फूलचंद अग्रवाल महाविद्यालय, नवापारा,
जिला - रायपुर (छग
*Corresponding Author E-mail: patelanjani28@gmail.com, verma25rajeshwar@gmail.com
ABSTRACT:
खरपतवार धान-फसल के अधिकतम उत्पादन में सर्वाधिक बाधक होते है। खरपतवार एवं धान-पौधों के मध्य स्थान, भूमि में उपलब्ध नमी, पोषक तत्वों एवं सूर्य -प्रकाष के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा होती है। धान-खेतों में विभिन्न प्रकार के अवांछित खरपतवार पाये जाते है। खरपतवारों का उद्गम, विकास एवं वितरण उच्चावच, मिट्टी, वर्षा, सिंचाई एवं धान की कृषि-विधि से प्रभावित होता है। खेत में खरपतवारों की उपस्थिति विभिन्न कीट -व्याधियों में एंकातर व समांतर पोषक का कार्य करता है, जिससे उत्पादन लागत में वृद्वि होती है।
KEYWORDS: खरपतवार, धान-फसल
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खुर्रा विधि द्वारा धान की बोवाई कुल सर्वेक्षित धान क्षेत्र के 12.64 प्रतिषत में की जाती हैै। इस विधि का प्रयोग कम वर्षा वाले भागों में नमी के अधिकतम उपयोग के लिए किया जाता है। वर्षा प्रांरभ होते ही धान एवं खरपतवारों के बीजों में साथ साथ अंकुरण प्रारंभ हो जाता है। धान की अपेक्षा खरपतवारों की वानस्पतिक वृद्वि तीव्र होने के कारण खुर्रा विधि द्वारा बोवाई किये गये खेत में करगा, सांवा, दूबी , चुहका, काॅसी, सोमना एवं मौथा खरपतवारों की मात्रा अन्य विधियों की तुलना में सर्वाधिक होता है । निंदाई नहीं होने की दषा मंे धान के उत्पादन में 70 से 85 प्रतिषत तक की कमी का आंकलन किया गया है।
सामान्य वर्षा वाले भागों में धान-बोवाई की बतर विधि सर्वाधिक प्रचलित है। कुल सर्वेक्षित धान क्षेत्र के 72.52 प्रतिषत में बतर विधि द्वारा बोवाई की गयी । बतर विधि से बोये गये धान-खेत में करगा, दूबी, सोमना, नरजवां एवं भैसरा खरपतवारों का वितरण अधिक मात्रा में मिलता है। लगातार वर्षा होने की दषा में 3.72 प्रतिशत धान क्षेत्र में कृषक लेई विधि द्वारा धान बीजों की बोवाई करते है। लेई विधि में मचाई किये गये खेत में धान के अंकुरित बीजों का छिड़काव करते है। खेत में मचाई प्रक्रिया में पूर्व उपस्थित खरपतवार नष्ट हो जाते है। केवल बहुवर्षीय खरपतवार यथा-करगा, दूबी, काॅसी एवं मौथा सामान्य मात्रा में पाया जाता है।
पर्याप्त वर्षा व सिंचाई की सुविधा वाले क्षेत्रों में बीज बोवाई की रोपा विधि प्रचलित है। सर्वेक्षित धान क्षेत्र के 11.12 प्रतिषत में रोपा विधि द्वारा धान की बोवाई की गयी । रोपा विधि में खेतों में मचाई के कारण सांवा, चुहका, नरजवां, मछरिया, मौथा एवं भैसरा आदि खरपतवार गलकर मिट्टी में जीवांष की मात्रा मे वृद्वि करते हैं। रोपाई किये गये धान-खेतों में करगा एवं सोमना खरपतवार कम मात्रा में पाया गया। निंदाई नहीं होने की दषा में धान के उत्पादन में 15 से 30 प्रतिषत तक की कमी का आंकलन किया गया है।
(6) अन्य कारक
उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त खेत की अधिवासों से दूरी, जोत का आकार एवं खेत के मेड़ में वनस्पति का प्रकार खरपतवारों के वितरण एवं सघनता को प्रभावित करता है। धान-खेतों के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि अधिवासों के समीप स्थित धान- खेत में खरपतवारों की मात्रा (सघनता) दूरस्थ स्थित खेतों की तुलना में कम होता है। इसका प्रमुख कारण कृषक परिवार द्वारा घरेलू कार्य के पष्चात समीप स्थित खेत में खरपतवारों की निंदाई करना है। जोत के आकार में वृद्वि के साथ-साथ खेत में खरपतवार की मात्रा (सघनता) में वृद्वि होती जाती है। वृहत्त जोत आकार के खेत की तुलना में लघु जोत आकार के खेत में सघन निंदाई सरलता से हो जाती है। वृहत्त जोत आकार के खेत में निंदाई के दौरान खरपतवारों के छुट जाने की संभावना अधिक होती है। धान खेत में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के पौधे एवं वृक्ष ग्रीष्मकाल में खरपतवारों को सूर्याताप से नष्ट होने से बचा लेते है। जिससे कि खेत में मौजूद खरपतवार वर्षाकाल में वानस्पतिक विकास कर फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है।
निष्कर्ष
1- प्रस्तुत षोध के निष्कर्ष निम्न है -
2- समान भौतिक परिस्थितियों में धान की अपेक्षा खरपतवारों की वानस्पतिक विकास की तीव्र दर का प्रतिकूल प्रभाव धान के उत्पादन पर होता है।
3- खरपतवारों की संख्या एवं सघनता का संबंध मिट्टी की जलधारण क्षमता से होता है। कन्हार मिट्टी युक्त खेतों की जलधारण क्षमता अधिक होने से खरपतवारों की संख्या एवं सघनता कम तथा भाठा मिट्टी वाले खेतों की जलधारण क्षमता कम होने के कारण खरपतवारों की संख्या एवं सघनता अधिक होती है।
4- रायपुर संभाग मंे वृष्टि. छाया से प्रभावित बलौदाबाजार, सिमगा, भाटापारा, तिल्दा, कसडोल एवं बिलाईगढ़ विकासखण्डों के धान खेतों में अन्य कारकों की अपेक्षा अल्प वर्षा खरपतवारों के अत्यधिक विकास के लिए उत्तरदायी तथ्य हैं।
5- नलकूप सिंचित धान खेतों में रोपा विधि से बीज बोवाई करने पर खरपरवार गलकर मिट्टी में जीवांष की मात्रा में वृद्वि करते है। यह धान कृषि के संविकास (ैनेजंपदंइसम क्मअमसवचउमदज) में धनात्मक कारक है।
REFERENCES:
1. Aroleo, H.R.: “Rice In India” Eurosia Publishing House (P), New Delhi, 1986
2. Chandraker, A.R.: “Application of Vacuum In Paddy Cultivation” IIG and IGU Commission Meeting on Land –Degradatio on Desertification, Vol. XXLL, 2001
3. Dey, B.B.: “Preliminary Investigation of Paddy Field Weeds of Some Localities of North- Eastern India “Studies on Weed Control, Vol-2, No.3-4,1997.
4. Henrich, J.: “Interaction Between Weed Control And Fertilizer Use In Rice Cultivation In Sierra-Leone, “Plant Research Development, vol . 18., 1983
5. International Rice Research Institutes “Weed Reported Rice In India L” I.R.R.I. Publishing Company Philippines ,1989.
6. Verma, R.K.: “Biodiversity and Energy Budget In Paddy Cultivation” Un Published Ph.D. Thesis, Pt.RSU, Raipur, 2005
Received on 30.10.2020 Modified on 20.11.2020
Accepted on 10.12.2020 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences. 2020; 8(4):139-144.